Monday, 16 September 2013

राजस्थान लोकजीवन शब्दावली

राजस्थान लोकजीवन शब्दावली
1.       बिजूका – (अडवो, बिदकणा) – खेत में पशु-पक्षियों से फसल की रक्षा करने के लिए मानव जैसी बनाई गयी आकृति
2.       उर्डो, ऊर्यो, ऊसरडो, छापर्यो - ऐसा खेत जिसमे घास और अनाज दोनों में से कुछ भी पैदा न होता हो
3.       अडाव – जब लगातार काम में लेने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाने पर उसको खाली छोड़ दिया जाता है
4.       अखड, पड़त, पडेत्या – जो खेत बिना जुता हुआ पड़ा रहता है
5.       पाणत – फसल को पानी देने की प्रक्रिया
6.       बावणी – खेत में बीज बोने को कहा जाता है
7.       ढूँगरा, ढूँगरी – जब फसल पक जाने के बाद काट ली जाती उसको एक जगह ढेर कर दिया जाता है
8.       बाँझड – अनुपजाऊ भूमि
9.       गूणी – लाव की खींचने हेतु बैलो के चलने का ढालनुमा स्थान
10.   चरणोत – पशुओं के चरने की भूमि
11.   बीड – जिस भूमि का कोई उपयोग में नहीं लिया जाता है जिसमें सिर्फ घास उगती हो
12.   सड़ो, हडो, बाड़ – पशुओं के खेतों में घुसने से रोकने के लिए खेत चारो तरफ बनाई गयी मेड
13.   गोफन – पत्थर फेकने का चमड़े और डोरियों से बना यंत्र
14.   तंगड-पट्टियाँ – ऊंट को हल जोतते समय कसने की साज
15.   चावर, पाटा, पटेला, हमाडो, पटवास – जोते गए खेतों को चौरस करने का लकड़ी का बना चौड़ा तख्ता
16.   जावण – दही जमाने के लिए छाछ या खटाई की अन्य सामग्री
17.   गुलेल – पक्षी को मारने या उड़ाने के लिए दो – शाखी लकड़ी पर रबड़ की पट्टी बांधी जाती जसमे में बीच में पत्थर रखकर फेंका जाता है.
18.   ठाण – पशुओं को चारा डालने का उपकरण जो लकड़ी या पत्थर से बनाया जाता है
19.   खेली – पशुओं के पानी पिने के लिय बनाया गया छोड़ा कुंड
20.   दंताली – खेत की जमीन को साफ करना तथा क्यारी या धोरा बनाने के लिए काम में ली जाती है
21.   लाव – कुएँ में जाने तथा कुएँ से पानी को बाहर निकालने के लिए डोरी को लाव कहा जाता है
22.   रेलनी – गर्मी या ताप को कम करने के लिए खेत में पानी फेरना
23.   नीरनी – मोट और मूँग का चारा
24.   नाँगला – नेडी और झेरने में डालने की रस्सी
25.   सींकळौ – दही को मथने की मथनी के साथ लगा लोहे का कुंदा
26.   लूण्यो – मक्खन. इसको “घीलडी” नामक उपकरण में रखा जाता है
27.   ओबरी – अनाज व उपयोगी सामान को रखने के लिय बनाया गया मिट्टी का उपकरण (कोटला)
28.   नातणौ- पानी, दूध, छाछ को छानने के काम आने वाला वस्त्र
29.   थली – घर के दरवाजे का स्थान
30.   नाडी – तलाई – पानी के बड़े गड्डो को तलाई आय नाडी कहा जाता है
31.   मेर – खेत में हँके हुए भाग के चरों तरफ छोड़ी गयी भूमि
32.   जैली – लकड़ी का सींगदार उपकरण
33.   रहँट – सिंचाई के लिए कुओं से पानी निकालने का यंत्र
34.   सूड – खेत जोतने से पहले खेत के झाड-झंखाड को साफ करना
35.   लावणी – किसान द्वारा फसल को काटने के लिए प्रयुक्त किया गया शब्द
36.   खाखला – गेंहू या जौ का चारा
37.   दावणा – पशु को चरते समय छोड़ने के लिए पैरों में बांधी जाने वाली रस्सी
38.   हटडी – मिर्च मसाले रखने का यंत्र
39.   कुटी – बाजरे की फसल का चारा
40.   ओरणी – खेत में बीज को डालने के लिए हल के साथ लगाई जाती है इसको “नायलो” भी कहते है
41.   पराणी, पुराणी – बैलो या भैसों को हाकने की लकड़ी
42.   कुदाली, कुश – मिट्टी को खोदने का यंत्र
43.   ढींकळी – कुएँ के ऊपर लगाया गया यंत्र जो लकड़ी का बना होता है.
44.   चडस – यह लोहे के पिंजरे पर खाल को मडकर बनाया जाता है जो कुओं से पानी निकालने के काम आता है
45.   चू, चऊ – हल के निचे लगा शंक्वाकार लोहे का यंत्र
46.   पावड़ा – खुदाई के लिए बनाया गया उपकरण
47.   तांती – जो व्यक्ति बीमार हो जाता है उसके सूत या मोली का धागा बाँधा जाता है यह देवता की जोत के ऊपर घुमाकर बांधा जाता है
48.   बेवणी – चूल्हे के सामने राख (बानी) के लिए बनाया गया चौकोर स्थान
49.   जावणी – दूध गर्म करने और दही जमाने की मटकी
50.   बिलौवनी – दही को बिलौने के लिए मिट्टी का मटका
51.   नेडी – छाछ बिलौने के लिए लगाया गया खूंटा या लकड़ी का स्तम्भ
52.   झेरना – छाछ बिलोने के लिए लकड़ी का उपकरण इसको “रई” भी कहते है
53.   नेतरा, नेता – झरने को घुमाने की रस्सी
54.   छाजलो – अनाज को साफ करने का उपकरण
55.   बांदरवाल – मांगलिक कार्यों पे घर के दरवाजे पर पत्तों से बनी लम्बी झालर
56.   छाणों- सुखा हुआ गोबर जो जलाने के काम आता है

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